शुक्रवार, फ़रवरी 22, 2013

आतंकवादी बम धमाकों पर...


न जाने कौन से हैं दिल जो
दिलों के चीथड़े उड़ाते हैं,
इधर उज़ड़ती हैं जिंदगियां
और उधर ठहाके लगाते हैं....

वो आंखें हैं कि शीशा हैं
कि उनमें मर चुका पानी,
इधर होता है अँधेरा
उधर वो जश्न मनाते हैं.....

न जाने क्या वो खाते हैं
न जाने क्या वो पाते हैं
न जाने कौन सी दुनिया
जहां से वे आते जाते हैं....

मिले जो ईश्वर उससे
यही होगा सवाल अपना,
कि सारे पैदा होते ही दरिन्दे
मर क्यों नहीं जाते हैं....

- VISHAAL CHARCHCHIT

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