शुक्रवार, अप्रैल 06, 2012

जब से जागो तभी से सवेरा.....

होता है कभी - कभी यूँ भी कि
इंसान बिना जाने - समझे
मान बैठता है दिल की बात,
पकड़ लेता है एक ऐसी राह जो 
नहीं होती उसके लिए उपयुक्त
नहीं पहुँचती किसी मंजिल तक,
लेकिन चूंकि होता है एक जूनून
होते हैं ख्वाब जिनका पीछा करते
निकल जाता है बहुत दूर - बहुत आगे,
तब अचानक लगती है एक ठोकर,
बहुत तेज़ - बहुत ज़ोरदार कि
खुल जाती है जैसे उसकी आँख
हो जाता है अपनी गलती का एहसास,
लेकिन अब ?......क्या करे - क्या न करे
पीछे लौटे - आगे जाए - ठहर जाए
या फिर कोई नयी राह ली जाए......
अब टूट चुके होते हैं सारे ख्वाब
पूरी तरह से बुझ चुका होता है दिल
और हो चुका होता है एकदम निराश....
तभी एकाएक याद आती है उसे
बुजुर्गों से अक्सर ही सुनी हुई ये बात
कि जो होता है अच्छे के लिए होता है,
कुछ छूट जाने - कुछ खो जाने से
सब कुछ ख़त्म नहीं होता है.....
नहीं थी वो राह तुम्हारे लिए ठीक
अच्छा हुआ जो अभी लग गयी ठोकर
वर्ना आगे होती और ज्यादा तकलीफ,
उठो - खड़े होओ - और पकड़ो एक नयी राह,
अभी कुछ भी नहीं है बिगड़ा मत होओ निराश
क्योंकि जब से जागो तभी से सबेरा होता है......

- VISHAAL CHARCHCHIT

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