गुरुवार, अक्तूबर 06, 2011

भई रावण दहन की बधाई क्यों??


आज सुबह से भाई लोगों ने दशहरे की बधाई - शुभकामना दे - दे कर दिमाग खराब कर दिया......मैं ये सोच रहा हूँ कि ये लोग मुझे क्यों बधाई - शुभकामना दे रहे हैं.........क्या मैं रावण को मार कर आ रहा हूँ जो बधाई पे बधाई दिए जा रहे हैं भाई लोग ???............या मारने जा रहा हूँ जो शुभकामनायें दिए जा रहे हैं कि "जाओ बेटा तुमसे इस देश - इस समाज को बड़ी उम्मीदें हैं.....सम्हल कर वाण चलाना.....भगवान् तुम्हारी रक्षा करें......तुम्हें अथाह शक्ति प्रदान करें" वगैरह - वगैरह........या मुझसे किसी कलियुगी सूर्पनखा की नाक कटवाने के चक्कर में हैं भाई लोग.........सोच रहे होंगे ये देखने में सीधा - साधा लगता है...........सूर्पनखा इसके चक्कर में आ कर खुद ही अपनी नाक इसके हवाले कर देगी.......तो भाई आज की सूर्पनखाएं ?........हरे - हरे.....मत पूछिए, तलवार सहित मुझे भी गायब कर देंगी प्यार - प्यार से......अगले दिन टीवी चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज़ आएगी कि "एक प्रेमी गवां बैठा अपनी नाक बेवफाई के बदले".......फिर यही भाई लोग कहेंगे....."च्च - च्च कैसा घोर कलियुग आ गया है किसी का भरोसा नहीं किया जा सकता.........देखो तो कैसा भोला - भाला दिखता था".........कोई कहेगा...." अरे इसे तो हमने देखा था बहुत कविता - वबिता लिखता था.......भई ये कवि लोगों से तो सावधान ही रहना चाहिए, बड़े सनकी होते हैं"...........खैर, सारा दिन इसी उधेड़ - बुन में निकल गया, अब सोचा कि चलो आप लोगों से पूछता हूँ.........यहाँ एक से एक जानकार बाबू जी लोग बैठे हैं......क्या पता महात्मा बुद्ध कि तरह मुझे भी ज्ञान प्राप्त हो जाये............

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